Thursday, October 25, 2007

Saturday, October 13, 2007

आओ खेले , खेल !!!

ये खेल मंडल वाले बडे अजीब है या फिर हम से चिढ़ते है। ये लोग कभी भी उन खेलो को शामिल नही करते जिन में हमे महारत हांसिल है। डर है , सारे स्वर्ण तो हम ले ही लेंगे , रजत और कांस्य का भी उनके लिए ख़तरा है । आप सब को पता ही है कौन कौन से खले है वो, मगर मैं यहाँ सिर्फ एक ही का जिक्र कर रहा हूँ और उसी पर थोड़ी चर्चा करते है।
हाँ तो देवियों और सज्जनो वोह खेल है " टांग खीचना "। अरे क्या हुआ, पसंदीदा खेल का नाम आते ही होंटों पर मुस्कान तैर गई। होता है, होता है। आप सभी जानते है , मगर बहुत से भाई मानते नही , इस खेल में हम एक तरफ और दुनिया एक तरफ , तव भी अपना तो कुछ बिगड़ना नही है। आओ चले , थोडा इस पर प्रकाश डाले।
बात कहॉ से शुरू करे ... अरे , हम तो ब्लोग पर है , तो चलो यही से श्री- गणेश करते है।
किसी भाई ने लिखा , हमे ना जाने क्या हुआ हम हिंदी भूल गये और इंग्लिश का दामन थाम लिया। उनका ये लिखना तो साब जुर्म हो गया। लोगो ने आव देखा ना ताव बस दनदना दन बरस पडे, जिसे किसी ने उनकी दुखती रग पर हाथ ना रख, पाव रख मसल दिया हो। किसी ने कहा अपनी भाषा विकास के लिए दुसरी भाषा की मदद लेना गलत नही। हमे पता हो है यह सही बात है , मगर हम माने क्यों ? अरे भई खेल भावना भी तो किसी चिड़िया का नाम है , और खेल का रोज अभ्यास भी तो ज़रूरी है।
किसी सज्जन ने आज ज़रा गुमनाम हो कर एक अच्छी बात कह दी और पता नही पढने वाले कहॉ कहॉ तक , क्या क्या सोच गये और आगे मैदान में "खीचने टांग"। कुछ सज्जनो को परेशानी थी की वो गुमनाम क्यों है , तो कुछ को लगा उनका लेख किसी की शान में गुस्ताखी कर रहा है। वैसे बडे मजे की बात है , जिस की शान में लिखा गया था , उन साब की कोई प्रतिक्रिया नही आई , मगर बाक़ी लोगो का कप्तान साब को खेल भावना के तहत समर्थन जारी था।
चलो भाई हम तो छोटे से दर्शक है , खेल का मज़ा लेते ही रहेंगे और हाँ आप से गुज़ारिश है क्रपया खेलते रहिए !!!
धन्यवाद !!!
--- अमित १३/१०/०७