Wednesday, February 27, 2008

Nanjangud Temple...

This photo was selected as Photo Of Week for Infosys-Mysore intranet.

Wednesday, February 20, 2008

कुछ सवाल चोखेर बाली से...

अपने शौक के कारण कभी कभी ब्लॉग पर आ कर कुछ कुछ पढ़ लेता हूँ और अच्छा लगे तो कुछ कमेंट भी ज़रुर करता हूँ। काफ़ी दिनों से ब्लॉग का ताप मन कुछ गरम है। किस सज्जन ने स्त्रियों के सम्मान में कुछ गुस्ताखी की ( जोकि निहायत ही ग़लत बात है ) और कुछ स्त्रियों ने जंग का बिगुल बजा दिया और नाम दिया चोखेर बाली ! कुछ पुरूष भी इस मिशन में शरीक है। वैसे तो मैं ख़ुद इन सब की राय / सोच से काफ़ी इत्तिफाक रखता हूँ , मगर कहीं कहीं सोच में भी पड़ जाता हूँ। समझ ही नही आता क्या चल रहा है , उन्हें क्या कहना है या क्या साबित करना है। अगर सारी नही तो अधिकांश बातें बिल्कुल साफ-साफ है ( जो मुझे लगता है, उनका पता नही ) तो फिर वाद-विवाद कैसा ?बहुत सारे मुद्दे है इस वाद- के। चलो एक एक कर के थोडी थोडी बात करे।

१। स्त्री सम्मान: पता नही, हो सकता है ये मेरा भ्रम है , मगर मुझे लगता है स्त्री सम्मान में कहीं कोई कमी नही आई है जैसे जैसे स्त्री ऊँचाइयों को छूती जा रही है उसका मान सम्मान भी बढ़ रहा है अगर कुछ लोगो को यह बात हजम न हो तो कह सकते है पुरूष उनका सम्मान करने को विवश है फिर पता नही उन्हें क्यों लगता है उनका सम्मान खो रहा है कहीं कहीं यह बात ज़रूर है , मगर वो सिर्फ़ उन स्त्रियों के लिए है जो अपना सम्मान खोने को उतारू है, उदाहरण के लिए, हमारे पीजी में एक सुकन्या रहती है अक्सर रात हो घर से बाहर रहती है, और कम से कम ऑफिस के काम से तो नही और अब जिन सज्जन के साथ जा रही है उनका नम्बर तीसरा है वो सज्जन और मैडम दोनों ही सम्मान के पात्र है

२। रेप के कारण: सभी के अपने अपने तर्क है, कुछ पुरुषों ने तो स्त्री के कपड़ो को दोष देदिया एक छोटा सा सवाल है उन लोगो से, क्या कभी साड़ी या सलवार सूट पहने हुई लड़की का बलात्कार नही हुआ??? और जब ऐसा हुआ है तो कम से कम कपड़ो का तो कोई दोष इसमें नही है! इसके बहुत से कारण है जिनमे से कुछ है पुरूष की कुंठा और उसका विकृत दिमाग, समाज में ग़लत ढंग से फैलता आधुनिकरण का जाल और कुछेक स्त्रियों का थोड़ा औचापन

३। संपत्ति अधिकार: क़ानून का तो पता नही मगर आज कल शायद सब यही मानते ही की पिता की संपत्ति पर दोनों का बराबर अधिकार है काफ़ी लोगो का मत है की ये पिता की मरजी है कि किसको कितना दे मैं भी इसी बात को मानता हूँ

४: स्त्री की पुरूष पर निर्भरता: ये काफ़ी विवादास्पद है मैं तो सोचता हूँ स्त्री पुरूष दोनों एक दुसरे के पूरक है और कहे कि एक सिक्के के दो पहलू वैसे दोनों वक्तिगत रूप से आत्म निर्भर है किसी का न होना किसी को असहाय नही कर सकता कुछ पुरूष सोचते है कि वो एक स्त्री के सेर्वेसेरवा है वास्तव मे वो एक मिथ में है तथा कुछ स्त्रिया भी ऐसा ही सोच कर उनके मिथ को मजबूत करती है भगवान् ने जब सब को दो हाथ , दो पैर , दो आँख और सब के उपर एक दिमाग दिया है तो कोई किसी से कम कैसे मेरे रिश्ते कि एक दीदी है, और मेरे जीजाजी में शयद ऐसी कोई कमी नही है जो आप सोच नही सकते सारी कमियाँ एक साथ देखनी हो तो आप उनके दर्शन कर सकते है दीदी अपनी मेहनत से ख़ुद अच्छी गुजर कर लेती है मगर मैं आज तक नही समझा सबकी तमाम कोशिश के बाद भी वो उनके साथ रहने चली जाती है?

५। पतिता होना: मनीषा पांडेय जी ने बहुत सही कहा। इसका कोई मानक नही है किसी के हिसाब से हमारे पीजी कि सुकन्या पतिता हो सकती है और किसी के हिसाब से नही काफ़ी हद तक ये परी-स्थिओं पर भी निर्भर करता है कॉल सेंटर में काम करने वाली लड़की देर रात को ही घर आएगी और जो कि ठीक भी है इसका मतलब नही कि वो ग़लत है डे शिफ्ट की लड़की यदा कदा देर से आए चलता है मगर ये रोज हो तो सोचने वाली बात ज़रूर है, मगर यह भी ये नही कहता की वो पतिता है दूसरी तरफ़ अगर शराब पीना, सिगरेट पीना, सिटी बजाना आदि पतित होने की निशानी है वो येही काम करने वाले पुरूष भी पतित है इन सब काम करने वाले पुरूष को अगर हम पतित नही मानते तो ख़ुद ही सोचे गलती किस की है

अभी बहुत कुछ है कहने को, मगर अभी बस इतना ही ...

--- अमित २०/०२/२००८